*56 साल से आचार्यश्री विद्यासागर जी ने ग्रहण नही किया नमक शकर तेल हरि सब्जियां व फलफ्रूट*
*56 साल से आचार्यश्री विद्यासागर जी ने ग्रहण नही किया नमक शकर तेल हरि सब्जियां व फलफ्रूट*
*महातपस्वी का महात्याग 24 अंजुली ही लेते हैं 24 घन्टे में जल*
सुरेन्द्र जैन /धरसींवा रायपुर
भारत भूमि महातपस्वियों ऋषि मुनियों की तपोभूमि है जिसका नाम पहले आर्यवर्त था आर्यवर्त अर्थात जिस प्रकार जैन धर्म मे आर्यिका तपस्वी माताजी को कहते है उसी तरह आर्य ऋषि मुनियों को कहते थे जब इस देश का नाम आर्यवर्त था अयोध्या तब भी थी और अयोध्या के महाराजा नाभिराय व महारानी मरुदेवी के यहां सोलह स्वप्न देकर आदि कुमार का जन्म हुआ जिनके सौ पुत्रो में भरत ओर बाहुबली भी थे राज्याभिषेक के समय नीलांजना की नृत्य करते मृत्यु को देख उन्हें वैराग्य हुआ और वह राजपाठ त्यागकर मोक्ष मार्ग के पथ पर चलते हुए कैलाश पर्वत के अष्टापद से निर्वाण को प्राप्त किये जो आदि तीर्थंकर आदिनाथ भगवान हुए
आदिनाथ भगवान ने अपने काल मे अच्छे बुरे का ज्ञान कराया भक्ष अभक्ष्य का ज्ञान कराया अहिंसा का सन्देश दिया और "ऋषि बनो या कृषि करो" का शुभ सन्देश जगत के कल्याण को दिया
आदि तीर्थंकर के पुत्र भरत जब चक्रवर्ती हुए तब उनके नाम से देश का नाम आर्यवर्त से भारत हुआ इसी धरा पर आदि तीर्थंकर के बाद तेईस ओर तीर्थंकर हुआ अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी हुए सभी ने अपने तप चर्या से अहिंसा जीवदया परोपकार का शुभ सन्देश दिया भगवान महावीर स्वामी ने जियो ओर जीने दो का शुभ सन्देश दिया इसी तरह हमारे भारत की इस पवित्र भूमि पर मर्यादा पुरषोत्तम भगवान रामचन्द्र जी के जीवन ने हमे मर्यादाओं में रहने के साथ संस्कारी बनने पिता की आज्ञा का पालन करने और धर्म देश की रक्षा का शुभ सन्देश दिया
इस पावन पवित्र भूमि पर भगवान कृष्ण जी का जन्म भी हुआ उन्होंने गौमाता की रक्षा को एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गौवंश पशुधन की रक्षा का सन्देश दिया गुरु नानक साहब भगवान बुद्ध आदि सभी महापुरुषों ने भरत भूमि में जन्म लेकर सारे संसार को सदमार्ग दिखाया बर्तमान में ऐंसे ही महातपस्वी भरत भूमि पर आचार्यश्री विद्यासागर जी के रूप में संसार को सदमार्ग दिखा रहे हैं।
*कई प्राचीन तीर्थो का जीर्णोद्धार न नए तीर्थो का निर्माण*
बर्तमान में जैन धर्म के महातपस्वी दिगंबर जैनाचार्य विद्यासागरजी महामुनिराज संसार में रहकर भी संसार से न्यारे होकर जन जन को आत्मतत्व का ज्ञान कराकर आत्मकल्याण का मार्ग दिखा रहे हैं संसार मे इस समय उनके जैंसा महातपस्वी महात्यागी कोई नहीं कुंडलपुर नैनागिर अमरकंटक जबलपुर पिसनहारी की मढिया जी नेमावर भोपाल रामटेक डोंगरगढ़ चन्द्रगिरि सहित देशभर में अनगिनत प्राचीन क्षेत्रो का जिर्णोद्धार ओर नए तीर्थो का निर्माण आचार्यश्री के मंगल आशीर्वाद से हो चुका है जैन धर्म अनुसार तीर्थो के निर्माता भावी तीर्थंकर होते है तो क्या आचार्यश्री की देह में जो आत्मा है वह किसी भावी तीर्थंकर की आत्मा है समाज के सच्चे श्रावक भी अब अपने आपको धन्य मानते हैं कि ऐंसे युग मे उनका जन्म हुआ जिस युग मे आचार्यश्री विद्यासागर जी की तपचर्या के उन्हें दर्शन हो रहे और आत्मकल्याण की सीख मिल रही।
*56 साल से नमक शकर हरि सब्जियां फलफ्रूट सहित कई चीजों का त्याग*
जैन आचार्यश्री विद्यासागर जी की तप चर्या महान है ब्रह्मचारी महावीर भैया जी बताते है कि आचार्यश्री बीते 56 सालों से कई चीजों का त्याग कर चुके हैं आचार्यश्री दिगंबर परंपरा में महातपस्वी मुनि हैं उन्होंने नमक का त्याग तो 56 साल पहले ही कर दिया था इसके बाद शकर सहित सभी प्रकार के मीठे का भी त्याग कर दिया हरि सब्जियां भी त्याग दी साथ ही फकफ्रूट ओर फलों का जूस भी त्याग दिया तेल या तेल तला भी आचार्यश्री त्याग चुके हैं जैनाचार्य 24 घन्टे में एक ही बार आहार लेते हैं वह भी विधि मिली तब अन्यथा उपवास हो जाता है और फिर चौबीस घण्टे बाद पुनः विधि लेकर आहार को निकलते हैं जो विधि ली है वह जहां जिनके चौके में मिलती है वहां पड़गाहन होता है तत्प्श्चात चौके में पड़गाहन करने वाले मन शुद्धि वचन शुद्धि काय शुद्धि के साथ आचार्यश्री की परिक्रमा देकर उन्हें चौके में प्रवेश कराते हैं जहां पूजन भक्ति के बाद आचार्यश्री की आहार चर्या शुरू होती है
आहारचर्या में आचार्य श्री पानी मे उबली दाल जिसमे कुछ भी नहीं रहता ओर रोटी लेते है घी जरूर ले लेते हैं रूखा सूखा आहार होता है आचार्यश्री का ओर कुंआ का छाना व उबाला हुआ गर्म जल मात्र 24 अंजुली ही लेते हैं इसके बाद चौबीस घन्टे कुछ नहीं लेते ।
*एक करवट विश्राम न बिस्तर न चटाई न कूलर पंखा एसी*
आचार्यश्री की चर्या बहुत कठिन है चाहे कितनी ही सर्दी ही क्यों न हो भले तापमान माइनस पर ही क्यों न हो लेकिन वह कभी गद्दा रजाई कंबल चटाई आदि कुछ नही लेते न ही गर्मियों में कितनी भी गर्मी क्यों न हो कूलर पंखा एसी का उपयोग नहीं करते आचार्यश्री लकड़ी के पाटे पर एक ही करवट कुछ समय रात्रि विश्राम करते हैं शेष समय तप चर्या में लीन रहते हैं मच्छर दानी या मच्छर अगरबत्ती आदि कुछ भी नहीं लेते भले कितने ही मच्छर क्यों न हों हालांकि जहाँ आचार्यश्री होते हैं उनकी तपचर्या से संभव नहीं कि तिर्यंच जीव वहां पहुचें।
*नँगे पैर ही करते हैं पद विहार*
दिगंबर मुनि सदैव नँगे पैर ही पदविहार करते हैं आचार्यश्री दिगंबर परंपरा के महातपस्वी मुनि है सदैव नँगे पैर पदविहार करते हैं
10 अक्टूबर 1946 शरद पूर्णिमा की रात्रि लगभग साढ़े बारह बजे आचार्यश्री का जन्म कर्नाटक प्रान्त के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में पिता मलप्पा जी और माँ श्रीमन्ति जी के यहां हुआ था बचपन से ही वह धर्म ध्यान में रुचि रखते थे आपकि जन्म कुंडली देखकर ही पंडितों ने बता दिया था कि यह बालक ब्रह्मज्ञान का भंडारी है बाल्यकाल में ही दीक्षा ले लेगा और हुआ भी यही 22 साल की उम्र में ही 30 जून सन 1968 में पूज्य आचार्य ज्ञान सागर जी से अजमेर में आचार्यश्री की मुनि दीक्षा हुई परिवार में माता पिता सहित एक एक कर सभी भाई वैराग्य धारण कर मोक्ष मार्ग पर चल पड़े जिस घर मे आचार्यश्री का जन्म हुआ था उस जगह अब भगवान शांतिनाथ स्वामी का भव्य मंदिर समाज ने बनवाया है और आचार्यश्री की बचपन की यादें उनकी सायकिल तक वहां समाज ने संभाल कर रखी हैं।
*राष्ट्रपति प्रधानमंत्री सहित कई बड़े नेता करते रहते हैं दर्शन*
आचार्यश्री को मानने वाले जहां देशभर के गांव गांव तक गरीब किसान मजदूर उन्हें धरती के साक्षात भगवान मानकर पूजते हैं तो वही बड़े बड़े नेता राष्ट्रपति प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि भी उनके दर्शनों का समय समय पर लाभ लेकर देशहित में मार्गदर्शन लेते रहते हैं
राष्ट्रपति रहे रामनारायण कोविंदजी एवं अपने प्रधानमंत्रित्व काल मे स्वर्गीय पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी कमल नाथ जी साध्वी उमाश्री भारती जी दिग्विजय सिंह जी शिवराज सिंह चौहान सीजी के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ओर सबको हंसाने वाले फ़िल्म कलाकार राजपाल यादव आदि कई बड़े नेता आचार्यश्री के दर्शन कर देशहित में उनका आशीर्वाद ले चुके व समय समय पर बड़े नेता उनके दर्शनार्थ पहुचते रहते हैं।
*रायपुर जिले की ओर विहार*
इन दिनों जैनाचार्य विद्यासागर जी का मंगल विहार तीर्थक्षेत्र चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के समीप तिल्दा नेवरा की ओर चल रहा है मंगलबार को सिमगा के समीप आचार्यश्री का रात्रि विश्राम है सिमगा होते आचार्यश्री तिल्दा नेवरा की तरफ विहार करेंगे तिल्दा नेवरा में छोटी सी समाज ने भव्य मंदिर का निर्माण आचार्यश्री के आशीर्वाद से किया है जहां 9 दिसंबर से 15 दिसंबर तक श्री मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव होना है