दानशीलता की मिसाल---सर्वस्व न्योछावर कर दुलाराबाई बन गई आरंग की मीराबाई* - fastnewsharpal.com
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दानशीलता की मिसाल---सर्वस्व न्योछावर कर दुलाराबाई बन गई आरंग की मीराबाई*

 दानशीलता की मिसाल---सर्वस्व न्योछावर कर दुलाराबाई बन गई आरंग की मीराबाई* 



 

आरंग

द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण राजा मोरध्वज की कठिन परीक्षा ली थी। राजा मोरध्वज और रानी पद्मावती ने अपने बेटे को आरा से चीरकर इस कठीन परीक्षा में पास हुए। कृष्ण लीला की यह अद्भुत कहानी महासमुन्द जिले के बोडराबांधा (खट्टी)निवासी दुलारा बाई बरगहट ने सुनी। तब उन्होंने ऐतिहासिक नगरी आरंग को अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। दअरसल चार गांव की जमीदार दुलाराबाई भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं। वह निःसंतान विधवा हो गई। चार गांवों के सैकड़ों एकड़ जमीन का उपभोग करने वाला कोई वारिस नहीं था। उन्होंने आरंग में राधा-कृष्ण का भव्य मंदिर बनवाया। मंदिर ट्रस्ट की स्थापना हुई। और ट्रस्ट में अपना सबकुछ दान कर वह देह त्याग परलोक सिधार गई।


 *महासमुन्द की बेटी की अनन्य कृष्ण भक्ति* 


राजपूत क्षत्रिय खानदान की बेटी थी दुलारा बाई। महासमुंद जिले के खट्टी के निकट ग्राम बोडराबांधा की वह निवासी थी। बहुत ही संपन्न परिवार में जन्म ली।दुलारा बाई का बाल विवाह हो गया और वह निःसंतान ही विधवा हो गई। बोडराबांधा, कोकनाझर, डुमरडीह और छिंदौला इन चार गांवों की वह जमींदार थीं। सैकड़ों एकड़ जमीन की मालकिन दुलाराबाई मीराबाई की तरह श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी। उन्हें जब आरंग के ऐतिहासिक महत्व की जानकारी हुई तो उन्होंने यहां राधा कृष्ण का भव्य मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। दुलाराबाई द्वारा दान में सर्वस्व न्योछावर करने से सन् 1896 ई. में आरंग में पत्थर से भव्य राधाकृष्ण मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर ट्रस्ट का गठन किया गया। इस ट्रस्ट में उन्होंने चारों गांवों के घर, सैकड़ों एकड़ जमीन सहित सर्वस्व समर्पित कर दी। अपने लिए कुछ भी नहीं रखकर सब कुछ भगवान कृष्ण के नाम अर्पित कर दी। उनकी दानशीलता, उदारता व भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण ने उन्हें आरंग का मीराबाई बना दिया। अनन्य भक्ति को देखते हुए नगरवासी उन्हें आरंग की मीराबाई के रुप में आज भी याद करते हैं।

 *आज भी सुरक्षित है दान की 360 एकड़ जमीन* 


वर्तमान में मंदिर ट्रस्ट द्वारा आरंग नगर के हृदय स्थल में स्थापित राधाकृष्ण मंदिर और दान की लगभग 360 एकड़ जमीन की देखरेख की जा रही है।कोकनाझर, डुमरडीह और छिंदौला गांव में स्थित कृषि भूमि में अन्न उपजाया जाता है। इससे होने वाली आय से मंदिर ट्रस्ट द्वारा शिक्षा दान से लेकर धर्म आध्यात्म के कार्य किए जाते हैं। साथ ही राधाकृष्ण मंदिर के नाम से बारहवीं तक स्कूल भी संचालित किया जा रहा है। जहां वर्षभर विभिन्न अवसरों पर अनेक आयोजन भी होते रहता है।इस तरह दुलाराबाई ने अपना सबकुछ आरंग को समर्पित कर जो दुलार दिया है। आरंग नगर आज भी कृतज्ञ है।

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