*नाम अंबेडकर अस्पताल और अंबेडकर के अनुयायी को ही भर्ती करने बेड नहीं* - fastnewsharpal.com
फास्ट न्यूज हर पल समाचार पत्र,

*नाम अंबेडकर अस्पताल और अंबेडकर के अनुयायी को ही भर्ती करने बेड नहीं*

 *नाम अंबेडकर अस्पताल और अंबेडकर के अनुयायी को ही भर्ती करने बेड नहीं*



*400 किलो मीटर दूर बस्तर के गीदम से आई बीमार बेबा मां को लेकर भटकती रही बेटी*

*बड़ा सवाल आखिर कहां जाएं उपचार कराने गरीब लाचार लोग*

      सुरेंद्र जैन/धरसींवा 

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर  से लगभग 400 किलो मीटर की दूरी से अपनी गरीब बेबस मां का अंबेडकर अस्पताल में इलाज कराने आई बेटी सिस्टम की मनमानी के आगे नतमस्तक हो गई।

    गंभीर रूप से बीमार जिंदगी और मौत से जूझ रही बस्तर के गीदम जिला दंतेवाड़ा निवासी गायत्री जोगी की बेटी शीतल जोगी ने बताया कि उसकी माँ गंभीर रुप से बीमार है पिता के जाने के बाद से शीतल जोगी उम्र 18 साल दुकानों में मेहनत मजदूरी कर किसी तरह परिवार चलाती है उसके  छोटे भाई भी है एक तरफ महंगाई की मार दूसरी तरफ  बेरोजगारी की मार ओर तीसरी तरफ मां की बीमारी 18 साल की बेटी के ऊपर तो मानो दुखो का पहाड़ टूट पड़ा क्योंकि पिता की मौत के बाद घर मे कमाने वाला भी कोई नहीं भाई बहुत छोटे हैं आर्थिक तंगी के बीच बेटी शीतल जोगी  ने पहले वही सरकारी अस्पताल में कुछ दिन इलाज कराया और फिर वहां के चिकित्सकों ने उसे रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में इलाज कराने भेजा

   शीतल ने बताया कि वह बीमार मां  का उपचार कराने गीदम से रायपुर आई यहां जांच कर बोला गया कि जांच रिपोर्ट आने के बाद उपचार होगा

   जांच के बाद वह गीदम चली गई और जांच रिपोर्ट आने पर पुनः रायपुर आई अंबेडकर में मां को लेकर गई रोज रोज अंबेडकर आती एक धर्मशाला में उसने आश्रय ले लिया मां का डॉक्टर ने इलाज शुरू करते हुए उन्हें अस्पताल में भर्ती करने कहा लेकिन जब वार्ड में पहुची तो नर्स ने बोला कोई बेड खाली नहीं है डॉक्टर साहब से बोल दो भर्ती कराना है तो पहले कोई बेड खाली करवाएं

   इस तरह करीब सप्ताह भर थे 18 वर्षीय शीतल जोगी हैरान परेशान रही और अंततः जब उसकी मां को अंबेडकर में भर्ती नहीं किया तो वह हताश निराश होकर भगवान भरोसे मां को वापस घर गीदम ले जाने लगी और  भाठागांव बस स्टैंड पहुच गई।

   *परिचित को बताई आपबीती*

     अपनी मां के इलाज को दर दर भटक रही शीतल को मां की सहेली का ध्यान आया कि वह धरसींवा के पास रहती हैं और ध्यान आते ही उसने मां की सहेली को काल कर मां की गंभीर बीमारी और अंबेडकर अस्पताल में भर्ती नहीं करने की बात बताई

  *मां की सहेली ने की मां की मदद*

  जानकारी मिलते ही मां की सहेली ने अपने पति को कार से भेजकर पीड़ित को भाठागांव बस स्टैंड से एम्स तक पहुचाया अब एम्स तो पहुच गए लेकिन वहां भी भर्ती नहीं किया निवेदन करने पर रात वही रुकने की अनुमति जरूर दे दी है

      अब यहां बड़ा सवाल यह उठता है की क्या अंबेडकर अस्पताल में भर्ती कर इस गरीब बीमार लाचार महिला का चिकिसक समुचित उवचार नहीं कर सकते

Previous article
Next article

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads