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काफी प्राचीन है आरंग के जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

 काफी प्राचीन है आरंग के जगन्नाथ मंदिर का इतिहास



कढ़ी भात का भोग ग्रहणकर निकलते हैं भगवान जगन्नाथ रथयात्रा में 


आरंग

 पुरा नगर आरंग का इतिहास सदियों पुरानी है।इसे धार्मिक और मंदिरों की नगरी होने का गौरव प्राप्त है। वहीं नगर के मध्य में  स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है।पूर्वमुखी यह मंदिर का मंडप द्वार बारह पाषाण स्तंभों से निर्मित है। गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा मैया की कास्ट की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे के ठीक ऊपर शीलालेख में पचकौढ़ीया बाबा 1234 अंकित है। इससे यह मंदिर की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है। लोग बताते हैं पहले इस मंदिर के सम्मुख पचकौढ़ीया बाबा का पाषाण निर्मित मठ था।जो वर्तमान में नही है। मंदिर के प्रवेश द्वार की दाहिने ओर पाषाण से निर्मित काफी प्राचीन दक्षिण मुखी हनुमान तथा बाएं ओर भगवान जगन्नाथ स्वरुप पतीत पावन की काष्ठ की मूर्ति स्थापित है।मंदिर के आसपास राम जानकी मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर और भगवान भुनेश्वरनाथ महादेव मंदिर है। इसलिए श्रद्धालु इनके दर्शन को चार धामों का दर्शन मानते हुए श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ इन सभी मंदिरों की परिक्रमा और दर्शन करते हैं।

प्रति वर्ष रथयात्रा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ की विशेष पूजा-अर्चना के साथ नगर भ्रमण कराया जाता है। जिसमें नगर सहित अंचल के हजारों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। 

लोग बताते हैं जेठ पूर्णिमा स्नान यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ आलस में चले जाते हैं। जिसे भगवान को बुखार लगना, कहा जाता है। भगवान को दशमीं, एकादशी और द्वादस को काढ़ा पिलाया जाता है और तेरस से पथभात भोग प्रारंभ हो जाता है। आषाढ़ शुक्ल द्विज को भगवान कढ़ीभात का भोग पश्चात रथयात्रा के दिन नगर भ्रमण में निकलते हैं। इस तरह नगर में रथयात्रा का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

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